किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को ग्रीष्मकाल में खेतों की गहरी जुताई करने की सलाह दी है। विभाग के अनुसार, इस कृषि पद्धति से मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि, फसल उत्पादन में बढ़ोतरी और खेती की लागत में कमी आती है।
गर्मी के मौसम में की जाने वाली यह जुताई रबी फसल की कटाई के बाद और खरीफ फसल की बुआई से पहले की जाती है। इसे ऑफ सीजन जुताई भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया में खेत की मिट्टी को गहराई तक पलटा और ढीला किया जाता है।
पाटन विकासखंड के ग्राम ककरहटा में आयोजित एक कार्यक्रम में उप संचालक कृषि डॉ. एस. के. निगम, सहायक संचालक रवि आम्रवंशी और अनुविभागीय कृषि अधिकारी डॉ. इंदिरा त्रिपाठी ने किसानों को गहरी जुताई के लाभों की जानकारी दी।
संभावित नुकसान भी जानना जरूरी: सहायक संचालक रवि आम्रवंशी ने यह भी बताया कि अत्यधिक गहरी जुताई से मिट्टी के सूक्ष्मजीवों को नुकसान हो सकता है। साथ ही बार-बार गहरी जुताई से कार्बनिक पदार्थों का ऑक्सीकरण होकर उनकी मात्रा कम हो सकती है। इसके अलावा, गहरी जुताई के लिए अधिक शक्तिशाली ट्रैक्टर व उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिससे लागत बढ़ती है। यदि समय पर बारिश न हो तो मिट्टी सूखने की संभावना भी रहती है।
हर तीन साल में करें गहरी जुताई: डॉ. इंदिरा त्रिपाठी ने किसानों से आग्रह किया कि वे हर तीन वर्ष में एक बार खेत की गहरी जुताई जरूर करें। उन्होंने कहा कि सामान्य जुताई केवल 15-20 सेमी गहराई तक होती है, जिससे नीचे एक कठोर परत बन जाती है। इससे न तो पानी और हवा नीचे जा पाते हैं और न ही पौधों की जड़ें।
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