किसानों द्वारा धान की कटाई के बाद गेहूं, मटर और अन्य दलहनी-तिलहनी फसलों की बुवाई की जा रही है। किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे नरवाई जलाने के बजाय उसका उचित प्रबंधन करें।
कृषि विभाग के उपसंचालक डॉ. एस.के. निगम ने बताया कि नरवाई जलाने से मृदा की गुणवत्ता घटती है और मिट्टी में मौजूद जैव विविधता नष्ट हो जाती है। मिट्टी के सूक्ष्म जीव जलकर खत्म हो जाते हैं, जिससे जैविक खाद का निर्माण रुक जाता है। लगातार नरवाई जलाने से मिट्टी की ऊपरी परत कठोर हो जाती है, जिससे उसकी जल धारण क्षमता कम हो जाती है और फसलें जल्दी सूखने लगती हैं। नरवाई जलाने से पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है। इसके धुएं से वायु प्रदूषण बढ़ता है और वातावरण का तापमान भी बढ़ता है। मेढ़ों पर लगे पेड़-पौधे जलने से मित्र कीटों का भी नुकसान होता है, जो कृषि के लिए लाभकारी होते हैं।
डॉ. निगम ने बताया कि नरवाई जलाने के बजाय इसका प्रबंधन करने से पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। किसानों को सलाह दी गई है कि हार्वेस्टर से कटाई के बाद खेत में बचे 8-12 इंच के डंठलों को स्ट्रॉ रीपर का उपयोग कर भूसे में बदला जा सकता है। यह भूसा पशुओं के चारे के रूप में उपयोगी होने के साथ-साथ किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन बन सकता है। रोटावेटर की मदद से नरवाई को बारीक कर मिट्टी में मिलाया जा सकता है, जिससे जैविक खाद तैयार होती है। यह प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता और फसल उत्पादन में वृद्धि करती है।
किसान हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, और स्मार्ट सीडर की सहायता से खेत तैयार किए बिना सीधे बुवाई कर सकते हैं। इस विधि में नरवाई खेत में मल्च का कार्य करती है और धीरे-धीरे सड़कर खाद में परिवर्तित हो जाती है। इससे खेत की तैयारी में होने वाली लागत, सिंचाई और समय की बचत होती है।
किसानों को सलाह: किसानों को चाहिए कि वे नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान को समझें और इसका प्रबंधन करें। इस उपाय से न केवल पर्यावरण संरक्षित रहेगा, बल्कि मृदा स्वास्थ्य और फसल उत्पादन में भी सुधार होगा।
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