खरीफ सीजन की फसलों में इस समय कई तरह के रोग फैलने का खतरा बढ़ गया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान, मक्का, कपास, ज्वार, सोयाबीन और अरहर की फसलों में अलग-अलग रोग देखे जा रहे हैं। समय पर पहचान और अनुशंसित फफूंदनाशकों का प्रयोग करके किसान इन रोगों से अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं।
धान की रोपाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद खैरा रोग का असर दिखने लगता है। इसमें पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे बनते हैं जो बाद में कत्थई रंग में बदल जाते हैं। यह रोग मिट्टी में जिंक की कमी के कारण होता है। इसके नियंत्रण के लिए किसान प्रति हेक्टेयर 25 किलो जिंक सल्फेट (21%) या 12.5 किलो जिंक सल्फेट (33%) का उपयोग कर सकते हैं।
मक्का की पत्तियों पर हल्की हरी या पीली धारियां बनने लगती हैं, जो बाद में गहरे लाल रंग में बदल जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए मेनकोजेब 75 WP या कार्बेन्डाजिम 50 WP की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
ज्वार की पत्तियों पर छोटे-छोटे लाल धब्बे दिखाई देते हैं। यह रोग प्रायः भुट्टे निकलने के समय अधिक वर्षा होने पर फैलता है। इसके बचाव के लिए मेनकोजेब 75 WP की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कपास में जीवाणु पत्ती झुलसा: कपास की पत्तियों पर जीवाणु संक्रमण से झुलसा रोग फैल सकता है। इसके लिए अनुशंसित फफूंदनाशक का उपयोग करना जरूरी है।
सोयाबीन में सफेद मक्खी का प्रकोप: सोयाबीन की फसल पर सफेद मक्खी का असर अधिक देखा जा रहा है। इसके नियंत्रण के लिए बीटासाइफ्लूथिन + इमिडाक्लोरप्रिड (350 मि.ली./हेक्टेयर) या एसीटामिप्रिड + बायफेंथ्रिन (250 मि.ली./हेक्टेयर) का छिड़काव करें।
अरहर में फाइटोप्थोरा ब्लाईट: इस रोग से प्रभावित पौधे पीले होकर सूख जाते हैं और तनों पर गांठनुमा वृद्धि दिखने लगती है। हवा चलने पर पौधे वहीं से टूट जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए मेटालेक्सिल और मेनकोजेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कृषि विशेषज्ञों की सलाह: कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि किसान अगर समय पर रोग पहचानकर अनुशंसित फफूंदनाशकों का छिड़काव करें तो नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है और पैदावार भी सुरक्षित रह सकती है।
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