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हनी मिशन से 20 हजार मीट्रिक टन शहद का उत्पादन, मधुमक्खी पालकों को 325 करोड़ की आय

हनी मिशन
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खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने ‘विश्व मधुमक्खी दिवस-2025’ के उपलक्ष्य में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया। इस वर्ष कार्यक्रम की थीम रही – "प्रकृति से प्रेरित मधुमक्खी, सबके जीवन की पोषक", जो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण "श्वेत क्रांति से स्वीट क्रांति" को आगे बढ़ाने वाली है।

कार्यक्रम में महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आए मधुमक्खी पालक लाभार्थी, प्रशिक्षु, वैज्ञानिक, विद्यार्थी एवं विशेषज्ञ शामिल हुए। यह आयोजन न केवल तकनीकी विचार-विमर्श का मंच बना, बल्कि ग्रामीण भारत में नवाचार, प्रेरणा और आत्मनिर्भरता की मिसाल भी प्रस्तुत की।

हनी मिशन ने गांवों की आजीविका को दी नई उड़ान Honey Mission gave a new boost to the livelihood of villages:

श्री मनोज कुमार ने अपने संबोधन में कहा, मधुमक्खियां हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की रीढ़ हैं। वे न केवल शहद प्रदान करती हैं, बल्कि परागण के माध्यम से कृषि उत्पादन और पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाती हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आरंभ किया गया 'हनी मिशन' आज गांवों की आजीविका का एक मजबूत आधार बन चुका है। उन्होंने आगे कहा कि ‘स्वीट क्रांति’ केवल आर्थिक समृद्धि का माध्यम नहीं, बल्कि स्वास्थ्य समृद्धि का भी प्रतीक है। केवीआईसी द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयास आत्मनिर्भर भारत की ओर एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

शहद उत्पादन में रिकॉर्ड, किसानों की आय में इजाफा Record in honey production, increase in farmers' income:

केवीआईसी अध्यक्ष ने बताया कि अब तक देशभर में 2,29,409 मधुमक्खी बक्से और मधु कॉलोनियां वितरित की जा चुकी हैं। इससे लगभग 20,000 मीट्रिक टन शहद का उत्पादन हुआ है और मधुमक्खी पालकों को लगभग 325 करोड़ रुपये की आय प्राप्त हुई है। इसके अलावा वर्ष 2024-25 में करीब 25 करोड़ रुपये मूल्य का शहद निर्यात भी किया गया है।

ग्रामीण युवाओं, महिलाओं और किसानों के लिए समग्र आजीविका मॉडल:

कार्यक्रम में सीईओ सुश्री रूप राशि ने कहा, हनी मिशन केवल एक योजना नहीं, बल्कि यह एक समग्र आजीविका मॉडल है, जिससे हजारों ग्रामीण युवा, महिलाएं और किसान लाभान्वित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि केवीआईसी द्वारा संचालित हनी प्रोसेसिंग प्लांट्स, प्रशिक्षण केंद्र और मार्केटिंग नेटवर्क ने मधुमक्खी पालन को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है।

75% फसलों के परागण में अहम भूमिका निभाती हैं मधुमक्खियां: वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि मधुमक्खियों की मदद से लगभग 75% खाद्य फसलों का परागण होता है। यदि मधुमक्खियां न रहें, तो 30% खाद्य फसलें और 90% जंगली पौधों की प्रजातियां संकट में आ सकती हैं। कार्यक्रम के दौरान बच्चों द्वारा प्रस्तुत नाटक, कविताएं और निबंध भी आकर्षण का केंद्र बने। वहीं, देशभर से लाभार्थियों ने डिजिटल माध्यम से अपनी सफलता की कहानियां साझा कीं।

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