भारत सरकार ने सितंबर 2024 में डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन को मंजूरी दी है। इस मिशन का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में एक सशक्त डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) तैयार करना है, जिसमें एग्रीस्टैक, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली और समग्र मृदा उर्वरता एवं मानचित्र जैसे महत्वपूर्ण घटक शामिल हैं। इसका लक्ष्य देशभर में एक सुदृढ़ डिजिटल कृषि इकोसिस्टम स्थापित करना है, जिससे किसानों को समय पर और विश्वसनीय फसल संबंधी जानकारी उपलब्ध हो सके और किसान-केंद्रित नवाचारों को बढ़ावा मिले।
एग्रीस्टैक में तीन प्रमुख रजिस्ट्रियां शामिल हैं, जिन्हें राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश तैयार और संचालित करेंगे—
1. जियो-रेफरेंस्ड ग्राम मानचित्र
2. फसल बुवाई रजिस्ट्र्री
3. किसान रजिस्ट्र्री
किसान रजिस्ट्र्री में किसानों के जनसांख्यिकीय विवरण, भूमि स्वामित्व और बोई गई फसलों की पूरी जानकारी होगी। इसके माध्यम से किसान डिजिटल रूप से अपनी पहचान सत्यापित कर सकेंगे और ऋण, बीमा, खरीद-बिक्री एवं सरकारी योजनाओं के लाभ आसानी से प्राप्त कर पाएंगे।
डिजिटल क्रॉप सर्वे (DCS) सिस्टम प्रत्येक कृषि भूखंड का सटीक और रियल-टाइम फसल क्षेत्र डेटा प्रदान करेगा।
कृषि निर्णय सहायता प्रणाली
कृषि निर्णय सहायता प्रणाली, मौसम, मृदा, फसल, जलाशय और भूजल सहित भौगोलिक व गैर-भौगोलिक डेटा को एकीकृत और मानकीकृत करेगा। इसकी सहायता से फसल और मृदा मानचित्र, स्वचालित उपज आकलन मॉडल, सूखा/बाढ़ निगरानी प्रणाली जैसी सेवाएं उपलब्ध होंगी, जिससे सरकार के नीति-निर्माण और शोध संस्थानों व एग्रीटेक उद्योग के लिए नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
मृदा संसाधन मानचित्रण
सॉइल एंड लैंड यूज़ सर्वे ऑफ इंडिया के तहत पूरे देश में 1:10,000 स्केल पर गांव स्तर पर मृदा मानचित्र तैयार किए जा रहे हैं। इससे वैज्ञानिक भूमि उपयोग और फसल योजना बनाकर टिकाऊ कृषि को बढ़ावा मिलेगा।
प्रति बूंद अधिक फसल (PDMC) योजना
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग 2015-16 से प्रति बूंद अधिक फसल योजना लागू कर रहा है, जिसका उद्देश्य ड्रिप और स्प्रिंकलर माइक्रो इरिगेशन प्रणाली के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाना है।
⦁ छोटे और सीमांत किसानों के लिए 55 प्रतिशत एवं अन्य किसानों के लिए 45 प्रतिशत तक वित्तीय सहायता दी जाती है।
⦁ राज्य सरकारें भी अपने बजट से अतिरिक्त सब्सिडी प्रदान कर सकती हैं।
⦁ एक लाभार्थी को अधिकतम 5 हेक्टेयर तक माइक्रो इरिगेशन सिस्टम लगाने की अनुमति है।
माइक्रो इरिगेशन से न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि उर्वरक उपयोग, श्रम लागत और अन्य इनपुट खर्च भी कम होते हैं, जिससे किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
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