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Paddy Farming: धान की फसल में भूरा धब्बा रोग से बचाव: एक्सपर्ट से जानें कारण, लक्षण और उपचार

धान की फसल में भूरा धब्बा रोग
धान की फसल में भूरा धब्बा रोग

कई राज्यों में धान की खेती में डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस (DSR) तकनीक तेजी से अपनाई जा रही है। इससे खेत की तैयारी में मेहनत और खर्च दोनों कम होते हैं, लेकिन इसके साथ ही भूरा धब्बा रोग जैसी नई समस्या भी सामने आई है। यह रोग समय पर नियंत्रण न होने पर धान की फसल को 20 से 40 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकता है।
रोग फैलने के मुख्य कारण

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस रोग के प्रमुख कारण हैं:

  • गलत उर्वरक प्रबंधन और पानी की कमी
  • खेत में लगातार एक ही फसल उगाना (फसल चक्र का अभाव)
  • बिना बीज उपचार के बुवाई करना
  • नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का अत्यधिक प्रयोग

भूरा धब्बा रोग के लक्षण

  • पत्तियों पर भूरे रंग के गोल या अनियमित धब्बे
  • धब्बों के चारों ओर हल्का पीला घेरा
  • गंभीर स्थिति में धब्बों का तनों और बालियों तक फैलना
  • पौधों का सूखना और दानों का अधूरा भरना

रोग का असर

  • पौधे की बढ़वार रुक जाती है
  • दाने सही से नहीं बनते
  • उत्पादन में भारी गिरावट
  • गंभीर स्थिति में पूरी फसल नष्ट होने का खतरा

प्रभावी रोकथाम के उपाय

  • खेत की नियमित निगरानी और समय पर सिंचाई करें।
  • NPK का संतुलित उपयोग करें।

रोग दिखते ही फफूंदनाशक का छिड़काव करें:

  • कार्बेन्डाजिम (1 मिली/लीटर पानी)
  • डाइथेन एम-45 (2 मिली/लीटर पानी)
  • छिड़काव सुबह या शाम के समय 7 से 10 दिन के अंतराल पर करें।

जैविक व प्राकृतिक उपाय: जैविक खेती करने वाले किसान नीम का अर्क, गौमूत्र आधारित जैविक फफूंदनाशक या ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कर सकते हैं। शुरुआती अवस्था में ये उपाय रोग नियंत्रण में प्रभावी साबित होते हैं। 

किसानों के लिए सलाह: भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए सतर्कता ही सबसे बड़ा हथियार है। मौसम में बदलाव और खेत में अधिक नमी इस रोग को बढ़ावा देती है, इसलिए फसल की नियमित जांच करें और खेतों में पानी भराव से बचें। समय पर कार्रवाई और जागरूकता ही बेहतर पैदावार की कुंजी है।

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