भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की प्रमुख परियोजना नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेज़िलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) के तहत किसानों को जलवायु परिवर्तन के कृषि पर प्रभाव के प्रति जागरूक किया जा रहा है। इसके साथ ही किसानों को जलवायु अनुकूल तकनीकों को अपनाने के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। सरकार ने 2008 में राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) शुरू की, जो देश में जलवायु प्रभाव से निपटने के लिए एक व्यापक नीति प्रदान करती है।
आईसीएआर ने अपनी प्रमुख परियोजना एनआईसीआरए के माध्यम से कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करने के साथ-साथ फसल, पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन में जलवायु अनुकूल तकनीकों का विकास और प्रचार किया है। यह परियोजना उन क्षेत्रों पर विशेषकर जो सूखा, बाढ़, पाला, गर्मी की लहरें जैसी चरम मौसमी परिस्थितियों से प्रभावित हैं।
पिछले 10 वर्षों 2014-2024 के दौरान, आईसीएआर ने कुल 2593 किस्मों का विकास किया गया, जिनमें से 2177 किस्में विभिन्न जैविक और अजैविक तनावों के प्रति सहनशील पाई गई हैं। आईपीसीसी प्रोटोकॉल (IPCC Protocols) के अनुसार देश के 651 कृषि प्रधान जिलों में कृषि के जलवायु जोखिम और संवेदनशीलता का मूल्यांकन किया गया। इन संवेदनशील जिलों के लिए जिला कृषि आकस्मिक योजना (DACPs) तैयार की गई है, जिसमें क्षेत्र-विशिष्ट जलवायु अनुकूल फसलों, किस्मों और प्रबंधन प्रथाओं की सिफारिश की गई है।
किसानों की अनुकूलन क्षमता बढ़ाने के लिए "क्लाइमेट रेज़िलिएंट विलेजेस (CRVs)" की अवधारणा शुरू की गई है। देश के 151 जलवायु संवेदनशील जिलों के 448 गांवों में स्थानीय जलवायु अनुकूल तकनीकों का प्रदर्शन किया गया है।
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