भारत में समुद्री मत्स्य उत्पादन में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2020-21 में 34.76 लाख टन से बढ़कर यह 2023-24 में 44.95 लाख टन तक पहुँच गया है, जिसकी औसत वार्षिक वृद्धि दर 8.9% रही। आईसीएआर-केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में किए गए मूल्यांकन में भारतीय जलक्षेत्रों की 135 मछली प्रजातियों में से 91.1% स्टॉक को स्थायी और संतुलित पाया गया।
आईसीएआर के अधीन मत्स्य अनुसंधान संस्थान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं और जलवायु-सहिष्णु रणनीतियाँ विकसित करने पर कार्य कर रहे हैं। "राष्ट्रीय नवाचार जलवायु सहनशील कृषि परियोजना (NICRA)" के अंतर्गत असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा और केरल की आर्द्रभूमि मत्स्यपालन पर जलवायु प्रभाव का आकलन, प्रमुख नदी बेसिनों में जलवायु प्रवृत्ति का विश्लेषण तथा मछलियों के वितरण, पकड़ संरचना और उत्पादन पर प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है। समुद्री मत्स्य क्षेत्र में शोध कार्यों में जलवायु परिवर्तन मॉडलिंग, संभावित उत्पादन का आकलन, जोखिम और संवेदनशीलता विश्लेषण, कार्बन फुटप्रिंट व ब्लू कार्बन क्षमता, महासागरी अम्लीकरण का प्रभाव और अनुकूलन प्रबंधन उपाय शामिल हैं। साथ ही, ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में मछुआरों को जागरूक और प्रशिक्षित करने के लिए कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (PMMSY) राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसके अंतर्गत सतत मत्स्यन, पर्यावरण-अनुकूल जलीय कृषि, जलवायु-सहिष्णु अवसंरचना और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है। कृत्रिम रीफ का निर्माण और समुद्री-नदीय रैंचिंग कार्यक्रमों के माध्यम से मछली संसाधनों का पुनर्भरण किया जा रहा है।
इसके अतिरिक्त, योजना के अंतर्गत देशभर में तटीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 100 मछुआरा गांवों को जलवायु-सहिष्णु तटीय मछुआरा गांवों (CRCFV) के रूप में विकसित किया जा रहा है। प्रत्येक गांव के विकास पर 2 करोड़ रुपये की लागत केंद्र सरकार वहन कर रही है। इन गांवों का चयन स्थानीय आवश्यकताओं और अंतराल विश्लेषण अध्ययनों के आधार पर किया गया है।
पीएमएमएसवाई के अंतर्गत स्वच्छ मछली उत्पादन, प्रजाति विविधीकरण, निर्यातोन्मुख प्रजातियों का प्रोत्साहन, ब्रांडिंग, मानकीकरण और प्रमाणन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। साथ ही, आधुनिक मत्स्य बंदरगाहों और फिश लैंडिंग सेंटरों का विकास, कोल्ड चेन और पोस्ट-हार्वेस्ट अवसंरचना का विस्तार किया जा रहा है। योजना के तहत अब तक 58 मत्स्य बंदरगाहों और फिश लैंडिंग सेंटरों को 3281.31 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी दी गई है। इसके अलावा 734 आइस प्लांट/कोल्ड स्टोरेज, 192 खुदरा मछली बाजार, 21 आधुनिक थोक बाजार और 6410 मछली कियोस्क स्थापित करने के लिए 1568.11 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं।
मत्स्य क्षेत्र में नया बदलाव: मछली परिवहन के लिए भी 27,297 इकाइयाँ स्वीकृत की गई हैं जिनमें रेफ्रिजरेटेड और इंसुलेटेड ट्रक, लाइव फिश वेंडिंग सेंटर, ऑटो रिक्शा, मोटरसाइकिल और आइस बॉक्स सहित साइकिलें शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, तटीय गांवों में "सागर मित्र" नियुक्त किए गए हैं, जो मछुआरों को स्वच्छ मत्स्य पालन, व्यक्तिगत स्वच्छता और टिकाऊ मछली पकड़ने की तकनीकों के प्रति जागरूक करते हैं।
मछुआरों की आय बढ़ाने की पहल: मरीन प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (MPEDA), अपने "नेटफिश" नेटवर्क के माध्यम से मत्स्य गुणवत्ता प्रबंधन और सतत मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए राज्यों के सहयोग से व्यापक जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। 2007 से अब तक 45,500 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं जिनसे लगभग 15 लाख हितधारक लाभान्वित हुए हैं। इसके परिणामस्वरूप कटाई के बाद होने वाले नुकसान कम हुए हैं, समुद्री खाद्य की गुणवत्ता बढ़ी है, मछुआरों की आय में वृद्धि हुई है और भारतीय समुद्री निर्यात की प्रतिस्पर्धा और मजबूत हुई है।