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Natural farming: अब समय है प्राकृतिक खेती की ओर लौटने का: राज्य सरकार बनाएगी प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने की योजना

प्राकृतिक खेती
प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती एक ऐसी पारंपरिक और टिकाऊ कृषि पद्धति है, जो बिना रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के फसलों का उत्पादन करती है। यह खेती देशी गाय के गोबर, गोमूत्र, नीम, छाछ आदि जैविक घटकों पर आधारित होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है। 

गुजरात के राज्यपाल और प्राकृतिक खेती के प्रबल समर्थक आचार्य देवव्रत ने जबलपुर में आयोजित “एक चौपाल–प्राकृतिक खेती के नाम” कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि हमें धरती, जल, पशुधन, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को बचाना है, तो हमें रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाना होगा।

रासायनिक खेती से बिगड़ रहा स्वास्थ्य:

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि खेती में रसायनों, उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। फल-सब्जियों और दूध के माध्यम से यह ‘मीठा ज़हर’ हमारे शरीर में पहुंच रहा है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि आज ऐसी गंभीर बीमारियाँ, जैसे हृदय रोग, मधुमेह और किडनी फेलियर, छोटे बच्चों तक को हो रही हैं, जिनका कोई नशे या व्यसन से संबंध नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण हमारे खाने में मौजूद रासायनिक अंश हैं।

मिट्टी की उर्वरता पर मंडरा रहा संकट:

उन्होंने बताया कि दशकों के रासायनिक प्रयोगों ने मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर दिया है। हरित क्रांति से पहले हमारी मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की मात्रा 2-2.5% थी, जो अब घटकर मात्र 0.2-0.3% रह गई है। यह स्थिति भूमि को बंजर बना रही है। आज भारत सरकार केवल यूरिया और डीएपी पर ₹1.25 लाख करोड़ सालाना सब्सिडी खर्च कर रही है, जो कि एक बड़ी आर्थिक चुनौती है।

जैविक खेती भी नहीं पूर्ण समाधान: आचार्य देवव्रत ने कहा कि जैविक खेती भी ग्लोबल वार्मिंग का कारक बनती है क्योंकि इसमें उत्पन्न मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड से 22 गुना अधिक हानिकारक होती है। इसके अलावा, इसमें उत्पादन कम होता है और लागत अधिक आती है। इसलिए इससे भी किसानों को व्यापक लाभ नहीं हो पा रहा।

प्राकृतिक खेती: सरल, सस्ती और प्रभावशाली: राज्यपाल ने बताया कि प्राकृतिक खेती एक व्यावहारिक, कम लागत वाली और पर्यावरण हितैषी पद्धति है। यह न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, बल्कि जल की खपत को भी 50% तक कम करती है। इससे भूमिगत जलस्तर में सुधार होता है और उपज बेहतर व स्वास्थ्यवर्धक होती है। साथ ही, सरकार द्वारा उर्वरकों पर दी जाने वाली भारी-भरकम सब्सिडी को भी बचाया जा सकता है।

सरकार बनाएगी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की रणनीति: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा की कि मध्यप्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित योजना तैयार करेगी ताकि किसानों को इसका व्यापक लाभ मिल सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।

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