मूंगफली की अच्छी खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी की जांच कराना आवश्यक है। इससे यह पता चलता है कि मिट्टी में कौन-कौन से पोषक तत्व मौजूद हैं और किनकी कमी है। जांच के आधार पर ही खाद की सही मात्रा तय की जाती है, जिससे फसल को पर्याप्त पोषण मिल सके।
मूंगफली (Groundnut) भारत की प्रमुख तिलहन फसल है, जिसका उपयोग खाने के तेल और प्रोटीन के लिए बड़े पैमाने पर होता है। अच्छी पैदावार के लिए पौधों को मुख्य रूप से तीन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है- नाइट्रोजन- पत्तियों और तनों की वृद्धि के लिए, फॉस्फोरस- जड़ों के विकास और फूल बनने में मददगार, पोटाश- पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता और समग्र सेहत के लिए।
नाइट्रोजन: 50–60 किलो प्रति हेक्टेयर
फॉस्फोरस: 25–30 किलो प्रति हेक्टेयर
पोटाश: 50–60 किलो प्रति हेक्टेयर
नाइट्रोजन को दो भागों में डालना सबसे उपयुक्त होता है—पहली बार बुवाई के समय और दूसरी बार फूल आने के समय।
फॉस्फोरस और पोटाश को खेत की तैयारी के दौरान मिट्टी में मिला देना चाहिए ताकि यह जड़ों तक आसानी से पहुँच सके।
ध्यान रखें कि अत्यधिक नाइट्रोजन केवल पत्तियों की बढ़वार करता है लेकिन फलियों की संख्या घटा देता है।
जैविक खाद से मिट्टी की सेहत बेहतर:
रासायनिक खाद के साथ यदि किसान गोबर की खाद, कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें, तो पौधों को अतिरिक्त पोषण मिलता है और मिट्टी की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहती है। जैविक खाद मिट्टी की जलधारण क्षमता और जीवांश को बढ़ाने में मदद करती है।
सिंचाई और जल निकासी पर भी ध्यान दें: खाद का असर तभी दिखता है जब पौधे उसे सही तरह से सोख पाएं। इसके लिए समय पर सिंचाई जरूरी है, लेकिन खेत में पानी भराव नहीं होना चाहिए क्योंकि मूंगफली अधिक नमी सहन नहीं कर पाती। इसलिए जल निकासी की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दें।
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