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बागवानी और खाद्य प्र-संस्करण में मध्यप्रदेश की छलांग, 1000% उत्पादन वृद्धि और 4,000 करोड़ का निवेश

बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण
बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण

मध्यप्रदेश ने हाल के वर्षों में उद्यानिकी एवं खाद्य प्र-संस्करण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। प्रदेश की बागवानी फसलों की मांग अब देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है। इसका प्रत्यक्ष लाभ किसानों को मिला है, जिनकी आमदनी में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। आज मध्यप्रदेश उद्यानिकी और फूड प्रोसेसिंग का एक उभरता हुआ राष्ट्रीय केंद्र बन चुका है। फरवरी 2025 में भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में उद्यानिकी क्षेत्र में 4,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए। यह प्रदेश में गुणवत्ता, नवाचार और उत्पादन क्षमता में हुए सुधारों को दर्शाता है।

20 वर्षों में रिकॉर्ड वृद्धि Record growth in 20 years:

वर्ष 2019-20 में बागवानी फसलों का रकबा 21.75 लाख हेक्टेयर था, वहीं 2023-24 में बढ़कर यह 26.91 लाख हेक्टेयर हो गया। बीते 20 वर्षों में रकबा 4.67 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 27.71 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 35.40 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 417.89 लाख मीट्रिक टन तक पहुँच गया है, जो लगभग 1000% की ऐतिहासिक वृद्धि है।

अनुकूल जलवायु और उन्नत सिंचाई प्रणाली बनीं सफलता की आधारशिला:

मध्यप्रदेश की जलवायु बागवानी फसलों के लिए उपयुक्त है और सिंचाई की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है। यहाँ उद्यानिकी फसलों की औसत उत्पादकता 15.02 टन प्रति हेक्टेयर है, जो कि देश की औसत उत्पादकता से 23.21% अधिक है। खाद्यान्न फसलों की तुलना में यह उत्पादकता 5 गुना अधिक है।

106 नई सिंचाई परियोजनाएं प्रस्तावित 106 new irrigation projects proposed:

प्रदेश में केन-बेतवा लिंक, पार्वती-कालीसिंध-चंबल परियोजना, ताप्ती बेसिन मेगा रिचार्ज योजना जैसी महत्वपूर्ण जल परियोजनाओं पर कार्य जारी है। वर्ष 2025-26 में 106 नई सिंचाई परियोजनाएं प्रस्तावित की गई हैं, जिससे सिंचित क्षेत्र में बड़ी वृद्धि होगी। "पर ड्रॉप मोर क्रॉप" योजना के तहत अब तक 22,167 किसानों को ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली के लिए 130 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया है, जिससे 26,355 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा बेहतर हुई है।

नर्सरियों और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस से मिल रहा तकनीकी बल: प्रदेश की 40 जिला नर्सरियों और ई-नर्सरियों को हाईटेक बनाया गया है। ऑनलाइन पौधा बुकिंग पोर्टल भी विकसित किया गया है। मुख्यमंत्री द्वारा पीपीपी मॉडल पर खाली सरकारी भूमि में नई नर्सरियों के विकास के निर्देश दिए गए हैं। मुरैना, छिंदवाड़ा और हरदा में तीन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की जा रही है। वहीं मुरैना में आलू की समग्र खेती और ग्वालियर में 13 करोड़ रुपये की लागत से हाईटेक फ्लोरीकल्चर नर्सरी बनाया जा रहा है।

बागवानी उत्पादन में अग्रणी स्थान:

मध्यप्रदेश अब देश में संतरा, लहसुन, धनिया और अदरक के उत्पादन में पहले स्थान पर है। प्याज, मटर और मिर्च में दूसरा और फूलों, औषधीय एवं सुगंधित पौधों के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है।

उद्यानिकी रकबे का वितरण इस प्रकार है:

  1. फल: 4.61 लाख हेक्टेयर
  2. सब्जियाँ: 12.40 लाख हेक्टेयर
  3. मसाले: 8.99 लाख हेक्टेयर
  4. पुष्प: 14 हजार हेक्टेयर
  5. औषधीय एवं सुगंधित पौधे: 48 हजार हेक्टेयर

वैश्विक पहचान की ओर बढ़ता मध्यप्रदेश: रीवा का सुंदरजा आम और रतलाम का रियावन लहसुन को GI टैग मिल चुका है। साथ ही, 15 अन्य फसलों जैसे खरगोन की लालमिर्च, जबलपुर की मटर, बुरहानपुर का केला और सिवनी का सीताफल को GI टैग दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

खाद्य प्र-संस्करण और वैल्यू एडिशन में भी अग्रणी: प्रदेश में खाद्य प्र-संस्करण विभाग वर्ष 1982 से कार्यरत है। 2014 की नीति के तहत 25 करोड़ रुपये तक की परियोजनाओं पर 10% (अधिकतम 2.5 करोड़ रुपये) तक अनुदान दिया जा रहा है।
वर्ष 2018 से अब तक 85 करोड़ रुपये की लागत से 242 इकाइयाँ स्थापित की गई हैं। प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम योजना (PM-FME) के तहत वर्ष 2021-25 के दौरान 11,597 इकाइयों की स्थापना हुई है, जिनमें 35% तक क्रेडिट लिंक सब्सिडी प्रदान की जा रही है।

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