मक्का की खेती करने वाले किसानों को कृषि विभाग द्वारा उन्नत तकनीक अपनाने की सलाह दी जा रही है। किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग के अधिकारियों ने मक्का की अधिक उपज व जल संरक्षण के लिए रिज फरो विधि से बुआई करने की सिफारिश की है।
विकासखंड शहपुरा के ग्राम दामन खमरिया में कृषक प्रतीक जैन के खेत पर रिज फरो विधि से मक्का की बुआई का प्रदर्शन किया गया। इस मौके पर उप संचालक कृषि डॉ. एस.के. निगम और अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डॉ. इंदिरा त्रिपाठी भी उपस्थित रहीं।
मक्के का रकबा बढ़ने की उम्मीद: डॉ. निगम ने बताया कि जिले में मक्के का रकबा पिछले वर्ष 48,000 हेक्टेयर था, जो इस बार बढ़कर 55,000 हेक्टेयर तक पहुँचने की संभावना है। विभाग द्वारा लगातार किसानों को नई कृषि तकनीकों से अवगत कराया जा रहा है, जिससे उत्पादन लागत घटे और उपज बढ़े।
उप संचालक कृषि ने बताया कि रिज फरो विधि में कतार से कतार की दूरी करीब 2 फीट और पौधे से पौधे की दूरी 9 इंच रखी जाती है। इस विधि में एक एकड़ क्षेत्र में केवल 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। खेत में मेड (उठी हुई क्यारियाँ) और नालियाँ बनाकर बीज मेड पर बोये जाते हैं, जबकि नालियों से पानी की निकासी होती है। इससे पौधों की जड़ों को आवश्यक नमी मिलती है और खेत में जलभराव नहीं होता।
सूखे और जलभराव दोनों में असरदार: इस तकनीक की खास बात यह है कि सूखे की स्थिति में भी नालियों में संग्रहित नमी मेड तक पहुँचती रहती है, जिससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। साथ ही पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, जिससे वे तेज हवा में गिरने से बचते हैं।
खरपतवार नियंत्रण में मददगार: डॉ. इंदिरा त्रिपाठी के अनुसार, रिज फरो विधि में नालियों में पानी रुकने से खरपतवार की संख्या कम होती है, और उनका नियंत्रण भी आसान हो जाता है। साथ ही यह विधि वर्षा के बाद भी बुआई के लिए उपयुक्त है, जबकि पारंपरिक विधियों में बारिश से पहले बुवाई करनी पड़ती है।
मक्का उत्पादन में क्रांति लाएगी रिज फरो विधि: कृषि विभाग का मानना है कि यदि किसान रिज फरो विधि को अपनाते हैं, तो उन्हें बेहतर उपज, पानी की बचत और कम लागत में अधिक उत्पादन मिल सकता है। यह तकनीक विशेष रूप से मक्का जैसी फसलों के लिए बेहद लाभकारी साबित हो रही है।