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Amla farming: आंवला बागवानी: कमाएं 30 साल तक मुनाफा जानिए खेती का सही तरीका

आंवला बागवानी
आंवला बागवानी

मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में आंवला बागवानी एक लाभकारी विकल्प बनता जा रहा है, खासकर उन किसानों के लिए जिनके पास बंजर, ऊसर या कम उपजाऊ भूमि है। आंवला न केवल ऐसी ज़मीन में जीवित रह सकता है, बल्कि समय के साथ उस ज़मीन की उर्वरता भी बढ़ा सकता है।

तीसरे साल से शुरू हो जाती है पैदावार:

आंवला के पेड़ आमतौर पर तीसरे साल से फल देना शुरू करते हैं और 10–12 साल पुराने पेड़ों से प्रति पौधा 150–200 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो सकता है। एक बार रोपण के बाद ये पेड़ 30 साल से अधिक फल देते रहते हैं, जिससे यह खेती लंबी अवधि के लिए आय का स्थायी साधन बन जाती है।

स्व-परागण की कमी, कई किस्में लगाना जरूरी:

आंवले में स्व-परागण की कमी होती है, जिसके कारण फूल तो बहुत आते हैं लेकिन फल कम लगते हैं। इसलिए विशेषज्ञों की सलाह है कि बाग में दो से तीन किस्मों के पौधे लगाएं ताकि परागण बेहतर हो और फलत अधिक हो सके।

चुनें ये व्यावसायिक किस्में:

  1. कृष्णा (अगेती किस्म): फल बड़े (50-60 ग्राम), हल्के पीले रंग के और अत्यधिक कसैले होते हैं। भंडारण क्षमता अधिक और मादा फूलों की संख्या ज्यादा होती है। मुरब्बा, कैंडी और जूस के लिए उपयुक्त।
  2. कंचन (मध्यम अवधि किस्म): फल 32-35 ग्राम के, हरे-पीले रंग के होते हैं। तीसरे साल से फलन शुरू होती है और 10 साल पुराने पेड़ से 1–3 क्विंटल तक उपज मिल सकती है।
  3. नरेंद्र-7: पेड़ सीधे बढ़ते हैं। तीसरे साल से फल आते हैं। फल बड़े, हरे-सुनहरे और चमकदार।

बागवानी तकनीक: रोपण से देखभाल तक:

कृषि विज्ञान केंद्र, अयोध्या के डॉ. बी.पी. शाही के अनुसार, आंवले की बागवानी मानसून से पहले जुलाई-अगस्त में शुरू करनी चाहिए। खेत में 7x7 मीटर की दूरी पर 1 घन मीटर के गड्ढे खोदें। गड्ढों में भरें:

  1. 10 किलो गोबर की खाद
  2. 200 ग्राम यूरिया
  3. 100 ग्राम डीएपी
  4. 100 ग्राम पोटाश
  5. 20 ग्राम फिप्रोनिल कीटनाशक

गड्ढों में पानी डालें या एक बारिश के बाद पौधा लगाएं और अच्छी सिंचाई करें। इसके बाद नियमित अंतराल पर पानी और देखरेख जारी रखें।

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