मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के कई हिस्सों में आंवला बागवानी एक लाभकारी विकल्प बनता जा रहा है, खासकर उन किसानों के लिए जिनके पास बंजर, ऊसर या कम उपजाऊ भूमि है। आंवला न केवल ऐसी ज़मीन में जीवित रह सकता है, बल्कि समय के साथ उस ज़मीन की उर्वरता भी बढ़ा सकता है।
आंवला के पेड़ आमतौर पर तीसरे साल से फल देना शुरू करते हैं और 10–12 साल पुराने पेड़ों से प्रति पौधा 150–200 किलोग्राम तक फल प्राप्त हो सकता है। एक बार रोपण के बाद ये पेड़ 30 साल से अधिक फल देते रहते हैं, जिससे यह खेती लंबी अवधि के लिए आय का स्थायी साधन बन जाती है।
स्व-परागण की कमी, कई किस्में लगाना जरूरी:
आंवले में स्व-परागण की कमी होती है, जिसके कारण फूल तो बहुत आते हैं लेकिन फल कम लगते हैं। इसलिए विशेषज्ञों की सलाह है कि बाग में दो से तीन किस्मों के पौधे लगाएं ताकि परागण बेहतर हो और फलत अधिक हो सके।
गड्ढों में पानी डालें या एक बारिश के बाद पौधा लगाएं और अच्छी सिंचाई करें। इसके बाद नियमित अंतराल पर पानी और देखरेख जारी रखें।
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