जिले के किसानों को उप संचालक कृषि श्री यू.पी. बागरी ने सलाह दी है कि वे परंपरागत डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) उर्वरक के स्थान पर एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश) उर्वरक का उपयोग करें। उन्होंने बताया कि डीएपी में केवल दो पोषक तत्व – नाइट्रोजन और फॉस्फोरस – ही उपलब्ध होते हैं, जबकि एनपीके उर्वरक में इन दोनों के साथ-साथ पोटाश भी मौजूद होता है, जो पौधों की वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।
उप संचालक ने बताया कि एनपीके उर्वरक के उपयोग से किसानों को अलग से पोटाश डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिससे उर्वरकों की कुल लागत में कमी आती है। साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है और उत्पादन में सुधार होता है।
उन्होंने यह भी बताया कि डीएपी की जगह सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) और एनपीके का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है। एसएसपी के उपयोग से मिट्टी में सल्फर की भी आपूर्ति होती है, जो फसलों के लिए लाभकारी है। एसएसपी को खेत की तैयारी के समय उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे यह फसलों में अधिक प्रभावी रहता है।
डीएपी से पूरी नहीं होती फॉस्फोरस की जरूरत: डीएपी में 18% नाइट्रोजन में से केवल 15% और 46% फॉस्फोरस में से केवल 39% ही पानी में घुलकर पौधों को उपलब्ध होता है। शेष फॉस्फोरस मिट्टी में जम जाता है, जिससे मिट्टी कठोर होती है और उसकी जल धारण क्षमता घटती है।
विशेष फसलों के लिए उर्वरक सुझाव: आगामी मौसम में शंकर धान और शंकर मक्का के लिए एनपीके उर्वरक का उपयोग अत्यंत लाभकारी बताया गया है। दलहनी और तिलहनी फसलों में 80:40:30 के अनुपात में एनपीके और सल्फर का उपयोग करने की सलाह दी गई है।
नैनो तकनीक आधारित उर्वरक: आधुनिक और लाभकारी विकल्प
किसानों को नैनो तकनीक पर आधारित उर्वरकों के उपयोग की भी सलाह दी गई है।
इन उर्वरकों का पत्तियों पर छिड़काव करने से पौधों को पोषक तत्व सीधे और जल्दी उपलब्ध होते हैं, जिससे पैदावार में वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
किफायती कीमत, अधिक असर:
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