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Aam ki Kheti in Hindi: आम की खेती से जुडी पाएं सारी जानकारी, जानें आम की उन्नत किस्में होगा अच्छा मुनाफा

Aam ki Kheti in Hindi: आम की खेती से जुडी पाएं सारी जानकारी, जानें आम की उन्नत किस्में होगा अच्छा मुनाफा
आम की खेती से जुडी पाएं सारी जानकारी

आम भारतवर्ष का राष्ट्रीय फल है। स्वाद एवं गुणों के आधार पर आम को फलो के राजा कहा जाता है। आम पूरे भारतवर्ष, लंका, उत्तरी आस्ट्रेलिया, फिलीपीन्स, दक्षिणी चीन, मध्य अफ्रीका, एवं सूडान में पाया जाता है। यह गर्म तथा नम जलवायु वाले स्थानों में फैला हुआ है। देश में आम के बाग लगभग 18 लाख एकड़ भूमि में है। आम सर्वोपयोगी फल है। पके आम खाने के अतिरिक्त रस तथा अमावट बनाने में किया जाता है। इसमें शर्करा 11 से 20 प्रतिशत होता है। आम की खेती लगभग पूरे देश में की जाती है। यह मनुष्य का बहुत ही प्रिय फल माना जाता है इसमें खटास लिए हुए मिठास पाई जाती है। 

आम के पौधे की सिंचाई तथा तापमान:

आम की फसल के लिये बाग लगाने के प्रथम वर्ष सिंचाई 2-3 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए 2 से 5 वर्ष पर 4-5 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिये। तथा जब पेड़ो में फल लगने लगे तो दो तीन सिंचाई करनी अति आवश्यक है। तीसरी सिंचाई फलों की पूरी बढ़वार होने पर करनी चाहिए। आम के पौधे में फल लगते समय हवा और तूफान चलने से फल झड़ जाते हैं। आम की फसल के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। आम के पौधे का आदर्श पीएच 6 से 7 होना चाहिए। 

आम के पौधे के लिये भूमि एवं जलवायु:

आम की खेती ऊष्ण एवं समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जाती हैI आम की खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई तक सफलतापूर्वक होती है। आम का छोटा पौधा अधिक पाला सहन नहीं कर सकते तथा फूल लगने के समय वर्षा का होना फल के लिये लाभदायक नहीं है। आम के पौधे के लिये 1000 से 1150 मिलीमीटर जल उपयुक्त है। कम आर्द्रता एवं तेज हवा ज्यादा तापमान के समय हानिकारक है। आम की खेती प्रत्येक किस्म की भूमि में की जा सकती है। अच्छी जल निकास वाली दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है।

पौधे को किस प्रकार रोपित करें:

वर्षाऋतु में आम के पेड़ों को लगाने के लिए सारे देश में उपयुक्त माना जाता है। जिन क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है। पौधों की किस्म के अनुसार 10 से 12 मीटर पौध से पौध की दूरी होनी चाहिए,परन्तु आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2-5 मीटर होनी चाहिए। भारी दोमट मिट्टी- पौधों के बीच की दूरी 10 मीटर तथा दो कतारों के बीच की दूरी-10 मीटर होनी चाहिए। हल्की दोमट मिट्टी- पौधों के बीच की दूरी 8 मीटर तथा दो कतारों के बीच की दूरी-8 मीटर होनी चाहिए। वर्मीकम्पोस्ट 2 कि.ग्रा. नीम की खली 1 कि. ग्रा. हड्डी का चूरा अथवा सिंगल सुपर फास्फेट को खेत की ऊपरी सतह की मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढे को अच्छी तरह भर देना चाहिए।

आम के पौधे में खाद एवं उर्वरक Manure and Fertilizer for Mango Plant:

आम के पौधे मे नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटाश को प्रत्येक 100 ग्राम प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारों तरफ बनाये गये गढ्ढे में डालना चाहिए। इसके बाद मृदा की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति पौधा देना उचित है। जैविक खाद हेतु जुलाई-अगस्त में 250 ग्राम एजोसपाइरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिलाकर थलहों में डालने से उत्पादन में वृद्धि होती है।

आम फसल चक्र crop rotation: पोषक तत्वों,कीटों और खरपतवार के दबाव के एक सेट पर फसलों की निर्भरता को कम करता है। फसल चक्र विभिन्न प्रकार की फसलों से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का बेहतर उपयोग करके सिंथेटिक उर्वरकों और जड़ी-बूटियों की आवश्यकता को कम कर सकता है। फसल चक्र से मिट्टी की संरचना और कार्बनिक पदार्थ में सुधार हो सकता है।

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आम की प्रमुख किस्में

  1. रत्ना - यह यह खरीफ की फल है,रत्ना - यह यह खरीफ की फल है, जो प्रत्येक वर्ष फल बड़े होते हैं। इसकी अनुमानित पैदावार 250 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  2. केसर- यह खरीफ का फल है। अधिक उपज खाने में अतिस्वादिष्ट होते हैं। इसकी अनुमानित पैदावार 400 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  3. अरका अनमोल- यह अर्ध-प्रबल प्रकार का, नियमित फल देने वाला और उच्च घनत्व वाले रोपण के लिए उपयुक्त है। यह देर से पकने वाली किस्म है, जिसके फल जून के दूसरे से तीसरे सप्ताह में पक जाते हैं। फल आकार में आयताकार, मध्यम आकार के, औसतन लगभग 300-330 ग्राम वजन के होते हैं। गूदे की रिकवरी लगभग 70-75% है। गुणवत्ता बनाए रखना अच्छा है। 
  4. अर्क सुप्रभात - यह एक मध्यम जोरदार, नियमित और गुच्छेदार, अधिक उपज देने वाला प्रजाति है। फल का वजन 250-300 ग्राम तक होता है, फल का आकार अल्फांसो जैसा होता है। कमरे के तापमान पर इसकी शेल्फ लाइफ 8-10 दिन है।

फल चिकित्सा रोग निवारण:

  1. पत्ता बेवर रोग - इस कीट का प्रभाव जून-जुलाई तथा फरवरी-मार्च में होता है। इसके लार्वा पत्तियों का जाला बनाकर रहने लगती है। बचाव लिये के घने शाखाओं को काट देना चाहिए। पत्तियों से इसके लार्वा तथा प्यूपा को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए।
  2. पश्चमारी रोग - इस रोग का प्रभाव अक्टूबर-नवंबर में ज्यादा होता है। इस रोग से पत्ते मुरझा जाते हैं। रोगग्रस्त पौधा जड़ से सूखने लगता है। मुरझाए हुये पत्ते तथा सूखी शाखाओं को पेड़ों से अलग कर देना चाहिए। 
  3. आम की गुठली भृंग रोग - यह कीट फसल को नुकसान पहुंचाता है जो मार्च व मई के बीच लगता है। कवक के सक्रमण के लिए उत्तरदायी है। यह की आम की गुठली में छेद करती है तथा टिश्युस को खाती है। बगीचे में बचे हुए गुठलियों को नष्ट कर देना चाहिए। कीट को बाहर निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
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