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Potato Cultivation in Hindi: आलू की खेती करके किसान कमांए लाखों रूपये कम लागत ज्यादा मुनाफा, जानें बोने का सही तरीका

Potato Cultivation in Hindi: आलू की खेती करके किसान कमांए लाखों रूपये कम लागत ज्यादा मुनाफा, जानें बोने का सही तरीका
आलू की खेती करके किसान कमांए लाखों रूपये

आलू को दक्षिण अमेरिका के रूप में मनाया जाता है जो कि आलू के मूल स्थल के रूप में जाना जाता है, लेकिन आलू भारत में 17वीं सदी में यूरोप से आया था। आलू को धान, गेहूं और गन्ने के क्षेत्र के बाद कृषि क्षेत्र में चौथी स्थान पर जाना जाता है। यह एक ऐसी फसल है जो अन्य फसलों जैसे गेहूं, धान और मूँगफली की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक उत्पादन देती है और आय भी अधिक है। आलू की खेती पूरे भारत में 30 प्रतिशत उत्तरप्रदेश में 13 प्रतिशत बिहार में तथा 6-6 प्रतिशत मध्यप्रदेश व गुजरात राज्य में होता है। 

आलू की खेती के लिये जलवायु, भूमि तथा सिंचाई:

आलू ठंडे मौसम व रबी की फसल है। सामान्य स्थिति में, दिन के समय का तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए और रात्रि में, 4-15 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। बल्ब गठन के समय में 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा होता है। तापमान बहुत अधिक हो, तो बल्ब गठन बंद हो जाता है। कम तापमान पर इसकी वानस्पतिक वृद्धि सीमित होती है। हैरो या कल्टिवेटर द्वारा 3-4 बार हल करें। प्रत्येक हल के बाद लेवलर का उपयोग करें ताकि मिट्टी में साइकल और नमी का संरक्षण हो। वर्तमान में, रोटावेटर का उपयोग करने से खेत को जल्दी और अच्छे से तैयार किया जा सकता है। अच्छे उत्पादन के लिए, बोने से पहले हल आवश्यक है।

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आलू की फसल को सर्दियों में सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए जबकि सूखे के दौरान आमतोर पर ज्यादा सिंचाई करना चाहिए। भारी मृदा में बुवाई के 10-12 दिन बाद अंकुरण से पहले पहली सिंचाई करनी चाहिए। आलू में दूसरी सिंचाई बुवाई के 20-22 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई मिट्टी चढ़ाने के तुरंत बाद कन्द बनने की प्रारम्भिक अवस्था में करें। अंतिम सिंचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पहले बंद कर देना चाहिए। आलू की फसल के लिये विभिन्न प्रणालियों जैसे- टपकन सिंचाई छिड़काव ऊपरी रेन गन और बूम सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए। आलू की फसल में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 7-10 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।

आलू की खेती के लिये मिट्टी तथा सही समय:

आलू की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु बलुई दोमट या रेतीली मिट्टी में इसकी पैदावार ज्यादा होती है। आलू को 6-8 पीएच के बीच उपयुक्त है। अच्छी उपज के लिये देशी गोबर की खाद का छिड़काव करें। आलू की खेती तमिलनाडु और केरल को छोड़कर पूरे भारत में किसान भाई सफलतापूर्वक आलू की खेती करते हैं। इसकी खेती रबी के समय 15 सितंबर से नवबंर माह में बुवाई कर सकते हैं। भारत के कुछ जगहों पर खरीफ के सीजन में आलू की खेती की जाती है।

आलू की बुवाई कैसे करें How to Sow Potatoes:

आलू की बुवाई करने से पहले घास-पात को पूर्णरूप से हटा दें। आलू की खेती करने के लिये सबसे पहले आलू की दो भागों में कटिंग की जाती है। इसके बाद भूमि की क्यारियां बना लें उन क्योरियों में एक-एक करके आलू की रोपाई की जाती है। फिर आलू को मिट्टी से ढ़क दिया जाता है। 3 माह बाद आलू को खोद सकते हैं। आलू की बुवाई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें तथा कन्द से कन्द की दूरी आलू के आकार के अनुसार की जाती है।

आलू के लिये खाद और उर्वरक प्रबंधन तथा पैदावार:

यदि हरा खाद उपयोग, फार्म यार्ड मैन्यूर का उपयोग करने से जैविक पदार्थ बढ़ जाता है जो बल्ब के उत्पादन में मददगार होता है। नाइट्रोजन फॉस्फोरस और पोटाश का उपयोग करें। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश 180:80:100 किग्रा की आपूर्ति हो सकता है। आलू की जल्दी तैयार होने वाली किस्म पैदावार अपेक्षाकृत कम होती है जबकि लम्बी अवधि वाली किस्में अधिक उपज देती हैं। संकर किस्मों कि उपज 600-800 क्विंटल तक प्रति हैक्टर प्राप्त होती है तथा सामान्य किस्मों से उपज 350-400 कुंटल तक उपज प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।

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आलू की प्रमुख किस्में Major Varieties of Potatoes:

  1. कुफरी गंगा आलू की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देती है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 250 से 300 क्विंटल है। इसकी फसल 75 से 80 दिनांक में तैयार हो जाती है और उत्तर भारत के मैदानी इलाके इसी खेती के लिए अच्छे हैं।
  2. कुफरी स्वर्ण दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाके इस किस्म के आलू के उत्पादन के लिए अच्छे है। इसकी फसल करीब 110 दिनांक में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल पैदावार होती है। आलू की यह किस्म अन्य के मुकाबले जल्दी खराब हो जाती है।
  3. कुफरी चंद्रमुखी इस किस्म के आलू के पौधे का तना लाल-भूरे रंग के धब्बे के साथ हरा होता है। फसल तैयार होने में 80 से 90 दिनों का समय लगता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल है। 
  4. कुफरी पुखराज यह किस्म कंद अंडाकार, मध्यम गहरी आंखों वाले पीले और हल्के बैंगनी रंग के होते हैं, यह किस्म अगेती झुलसा रोग के लिए प्रतिरोधी है, जबकि पछेती झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। औसत पैदावार 350-400 क्विं/हेक्टेयर है।
  5. कुफरी सिंदूरी आलू भी आलू की उन्नत किस्म है जो पाले को भी सहन कर सकती है। मैदानी और पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती की जा सकती है। यह किस्म 120 से 125 दिनों में तैयार होती है और प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल तक पैदावार देती है।

आलू की खेती से कमाई: पूरे भारत में एक एकड़ भूमि में आलू का उत्पादन लगभग 110 कुंटल प्राप्त किया जा सकता है, जिसमें किसान भाईयों को 1 से 2 लाख रूपये तक की कमाई की जा सकती है।

आलू के रोग तथा बचाव Potato Diseases and Prevention:

  1. पक्षेती झुलसा रोग यह रोग आलू में फफूंद से लगने वाली एक भयानग बीमारी है। यह रोग आलू में तने तथा कन्दों पर होता है। आलू की पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं। तुरंत ही सिंचाई बंद कर देना चाहिए। लगाते वक्त नर्सरी का स्थान बदलें।
  2. अगेती झुलसा रोग यह रोग आल्टनेरिया सोलेनाई नामक कवक द्वारा होता है। आकार में बढ़ने के साथ-साथ इन धब्बों का रंग भी बदल जाता है और बाद में ये भूरे व काले रंग के हो जाते हैं।  आलू की खुदाई के बाद खेत में छूटे रोगी पौधों के कचरे का इकटठ् करके जला देना चाहिए।
  3. ब्लैक स्कर्फ रोग आलू के पौधों में ब्लैक स्कर्फ रोग का प्रभाव राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह देखने को मिलता है। रोग बढने पर कंदों खाने योग्य नहीं रहता।  इस रोग की रोकथाम के लिये खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। रोगरोधी किस्म के कंदों का चयन करना चाहिए।
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