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अपेक्षा
Khetivyapar Modern Farming
Potential Fertilizer and Agrochemical Expenses

85,000 रु.

Expected Yield

21 टन प्रति एकड़

Expected profit (Rs.)

60,10,000 रु.

Traditional Farming
Potential Fertilizer and Agrochemical Expenses

1,00,000 रु.

Expected Yield

15 टन प्रति एकड़

Expected profit (Rs.)

5,00,000 रु.

जलवायु (Climate)
  • अंगुर की खेती के लिए गर्म,शुष्क तथा ग्रीष्म ऋतु  सबसे अनुकूल है।
  • अंगूर के लिए अधिक तापमान हानिकारक है।

तापमान (Temperature)

  • 15 से  35 डिग्री सेल्सीयस तापमान उपयुक्त होता है।
  • ऐसे तापमान में अंगूर की खेती के लिए अनुकूल है।

जलमांग (Water Requirement)

  • इस फसल के लिए  600 से 1200 मिलीमीटर जल की आवश्यक है।
मिट्टी (Soil)
  • कार्बनिक पदार्थ रेतीली दोमट भूमि बेहतर होती है।
  • भूमि की जलनिकासी की स्थिति बेहतर होती है।
  • जल भराव की स्थिति में मिट्टी उपयुक्त नहीं होती हैं।
  • क्षारिय मृदा में फसल खराब होने की संभावना होती है।

पीएच  (Ph)

  • आदर्श पीएच 6.5 से  7.5 होना चाहिए।
  • अगर पीएच 6 से कम है तब चुने का प्रयोग करें।
  • अगर पीएच 7.5 से अधिक है तब जिप्सम का प्रयोग करें।
प्रमुख किस्में (Variety)

थांपसन सिडलेस

विशेषताएं – क्लस्टर्स मध्यम से बड़े, बीज रहित, अंडाकार, कोमल त्वचा, हरे सफेद से सुनहरे फर्म है।  भारत की सबसे ज्यादा निर्यात की जाने वाली किस्म।

अनब-ए-शाही

विशेषताएं – हर प्रकार की जलवायु के अनुकूल है। देर से पकने वाली किस्म, ज्यादा उपज देने वाली किस्म लम्बे बड़े एवं बीज सहित फल, TSS- 14-16 %, पाउड़री मिल्ड्यु रोग के प्रति सवेंदनशील। बेहतर गुणवत्ता के फल।  उपज 12 टन प्रति एकड़, आंध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा और  कर्नाटक में उगाई जाती है।

रेड ग्लोब

विशेषताएं – बड़े क्लस्टर, लाल गोल अंगूर, देरी से पकने वाली किस्म। तीन माह तक शीत अवस्था में रख सकते है। उपज 8 से 10 टन प्रति एकड़।

शरद सीडलेस

विशेषताएं- अंगूर क्रिस्प पल्प के साथ नीली काली, अंडाकार,  ठंडी जलवायु में उपज,मध्यम परिपक्वता के साथ, ट्रेनिंग व प्रुनिंग के लिए 125 दिन,बेहतर गुणवत्ता के साथक्लस्टर एवं बेरी के साथ थिनिंग और बेरी साइजिंग के साथ के साथ। अंगूर गार्ड के साथ पंक्तिबध्द  फलो के बक्से में भंडारण के समय so2 की चोट के कारण ब्लीचिंग के प्रति संवेदनशील। कम समय का भंडारण\शिपिंग के लिए उपयुक्त नहीं। नजदीकी बाजार के लिए उपयुक्त।

चीमा साहिबा

विशेषताएं-  पर परागण वाली फसल, बेहतर गुणवत्ता के साथ ज्यादा उपज,  क्लस्टर, देर से पकने वाली किस्म, शंक्वाकार कमजोर क्लस्टर के कारण शिपिंग में समस्या।

खेत की तैयारी (Preparation of Field)
  • खेत को 3 मीटर की सड़क बनाकर द्वारा 120 मीटर x 180 मीटर के भूखंड में अलग जाता है।
  • भूमि को समतल करें, 1 प्रतिशत से कम पानी का निकासी के अनुसार करें। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से कर सके।
  • 75 सेमी चौड़ाई, 75 सेमी गहरी, और उत्तर-दक्षिण 118 मीटर की लंबाई वाली खाइयों 3 मीटर के अंतर में भारी मशीनरी का उपयोग किया।
  • भूमि के 15 दिन तक खुला छोड़ा जाता है। पश्चात 45 सेमी मिट्टी को भरा जाता है।
  • भूमि गोबर खाद, सिंगल सूपर फॉस्फेट, म्युरेट ऑफ पोटास, सूक्ष्म पोषक और मिट्टी को मिलाकर भरते।
  • 50 किलोग्राम गोबर खाद, 2.5 किलोग्राम सुपरफॉस्फेट, 0.5 किलोग्राम म्युरेट ऑफ पोटास, और 50 ग्राम ज़िंक सल्फेट और और फेरस सल्फेट  को गढ्ढे के प्रति में मीटर की लंबाई के हिसाब से मिट्टी में मिलाकार डाला जाता है।
  • भूमि में कल्टिवेटर के सहायता से भूमि समतल कर सकते है।

बोवर और टेलीफोन या ‘टी’ ट्रेलिस के मामले में आदर्श आकार क्रमश: 60x80 मीटर और 90x120 मीटर हो सकता है।

पौधों के बीच की दूरी (Plant to Plant)
  • दो पौधों  की बीच की दूरी  -  3 मीटर
  • दो कतारों  की बीच की दूरी -  2 मीटर
खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer)
  • फसल के लिए एनपीके यानि नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, व पौटेशियम का उपयोग करें।
  • हल्की रेतीली मिट्टी में 200:200:400 किलोग्राम प्रति एकड़।
  • भारी दोमट मिट्टी में 265:350:265 किलोग्राम प्रति एकड़।
  • वार्षिक खुराक का 40 प्रतिशत जैविक खाद दिया जाता है। जबकि 60 प्रतिशत अकार्बनिक उर्वरक के रूप में दिया जाता है।
  • ड्रीप सिंचाई के साथ फर्टीगेशन किया जाता है।
  • N का 40 प्रतिशत, p2o5 का  50 प्रतिशत और वार्षिक खुराक का k2o का 33 प्रतिशत फसल वृद्धि के समय और बची हुई मात्रा अन्य समय में दिया जाता है।
सिंचाई (Irrigation)
  • अंगूर की खेती क्षेत्रों जहा वर्षा से ज्यादा वाष्पीकरण, उन क्षेत्रों में सिंचाई जरूरी है।
  • अंगूर की खेती के लिए सिंचाई लिए बूंद बूंद सिस्टम के माध्यम से सिंचाई की जाती है।
  • सिंचाई फसल के विकास द्वारा और बेरी विकास के विभिन्न अवस्थाओं दिया जाता है।

 

कटाई (Harvesting)
  • उत्तर भारत में बुवाई के लगभग दो साल बाद लगते है।
  • नई किस्मों में मई के आखिर में अंगूर पकते है।
  • कई बार कटाई के बाद में रंग परिवर्तित मिठास आ जाती है।
  • कटाई के पुर्व खराब गुणवत्ता फल हटा दिया जाता है।
  • 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में ऊपर तापमान बढ़ने पर क्लस्टर्स की कटाई की जाती है।

उत्पादन (Yield)

  • औसत उपज 10 टन प्रति एकड़।
  • बीज सहित की किस्मों औसत उपज 13-15 टन प्रति एकड़।
  • बीज रहित किस्मों की औसत उपज 7-8 टन प्रति एकड़।