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प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से गेहूं की खेती में घटी लागत, किसानों को मिला अधिक मुनाफा

गेहूं की खेती
गेहूं की खेती

प्राकृतिक खेती ने किसानों की रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम किया है, जिससे उन्हें कम लागत में अधिक लाभ मिल रहा है। इसी का उदाहरण हैं सिरमौर तहसील के माड़ौ गांव के एक कृषक की जिन्होंने परंपरागत खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाया है।

प्राकृतिक खेती से घटाई लागत, बढ़ाई मिट्टी की उर्वरता:

उन्होंने बताया कि परंपरागत खेती में रासायनिक उर्वरक, खरपतवारनाशक और कीटनाशकों के प्रयोग से लागत काफी अधिक आती थी, और साथ ही मिट्टी की उर्वरक क्षमता भी धीरे-धीरे घट रही थी। इसके साथ वर्ष 2023-24 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की। पूसा प्रजाति का गेहूं (किस्म 3386) का उपचारित बीज प्राप्त कर सुपर सीडर मशीन से बुवाई की। खेत की सिंचाई हर 20 से 21 दिन में आवश्यकतानुसार की गई। निदाई-गुड़ाई के बाद जीवामृत घोल का छिड़काव किया गया।

सुपर सीडर से बुवाई करने से उन्हें कई फायदे मिले:

फसल अवशेष मिट्टी में मिलकर जैविक खाद बन गया, साथ ही पानी की बचत हुई। पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ी, जिससे प्रदूषण में भी कमी आई और फसलों की पैदावार में बढोतरी हुई। कृषक बताते हैं कि गेहूं एक ऐसी फसल है जो अन्य फसलों की तुलना में कम खाद में भी अच्छी उपज देती है, साथ ही यह फसल विविधीकरण के लिए भी उपयुक्त है। प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग कर उन्होंने कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया है। अब वे क्षेत्र के अन्य किसानों को भी प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

प्राकृतिक खेती के फायदे:

  1. उपज में बढोतरी: प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों ने पारंपरिक खेती करने वालों के समान ही पैदावार की बात कही, इससे प्रति फसल अधिक पैदावार बढती है।
  2. बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करता है: प्राकृतिक खेती में किसी भी सिंथेटिक रसायन का उपयोग नहीं किया जाता है, इसलिए यह बेहतर स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है।
  3. पर्यावरण संरक्षण: प्राकृतिक खेती से मृदा जीव विज्ञान में सुधार, कृषि जैव विविधता में सुधार, तथा कार्बन और नाइट्रोजन उत्सर्जन में कमी के साथ जल का अधिक विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित होता है।
  4. किसानों की आय में वृद्धि: प्राकृतिक खेती का उद्देश्य लागत में कमी, जोखिम में कमी, समान पैदावार, अंतर-फसल से आय के कारण किसानों की आय में वृद्धि के साथ खेती को अनुकूलित बनाता है।
  5. पानी की खपत में कमी: विभिन्न फसलों के साथ काम करके, जो एक-दूसरे की मदद करती हैं तथा वाष्पीकरण के माध्यम से अनावश्यक जल हानि को रोकने के लिए मिट्टी को ढकती हैं, प्राकृतिक खेती 'प्रति बूंद फसल' की मात्रा को अनुकूलित करती है।
  6. सिंथेटिक रासायनिक इनपुट के अनुप्रयोग को समाप्त करता है: सिंथेटिक उर्वरकों, विशेषकर यूरिया, कीटनाशकों, शाकनाशियों, खरपतवारनाशियों आदि के अत्यधिक उपयोग को कम करता है।

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