भारतीय कृषि वैज्ञानिकों को हरित क्रांति युग के लिये जाना जाता है। ये वैज्ञानिक भी किसानों के “गुरु” हैं, जिन्होंने विज्ञान और नवाचार से कृषि को आत्मनिर्भरता और समृद्धि की राह दिखाई। हम उन वैज्ञानिक गुरुओं को नमन करते हैं, जिन्होंने अपने शोध, समर्पण और दृष्टि से भारत के किसानों खेती से लेकर तकनीकि तक सहयोग किया है। इन वैज्ञानिकों को जानना उनके कार्य को पहचानना और आने वाली पीढ़ी को कृषि क्षेत्र में इनके किये गये योगदान को अपनाना भारतीय खेती-किसानी के लिये हमेशा उपयोगी साबित होगा।
भारत में हरित क्रांति के जनक, ‘एवरग्रीन रिवोल्यूशन’ के प्रवर्तक डॉ. स्वामीनाथन को उपाधि मिली है। उन्होंने भारत को खाद्यान्न संकट से उबार कर आत्मनिर्भर बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने गेहूं और धान की अर्ध-बौनी, उच्च उत्पादक किस्में लाईं और किसानों तक इनकी पहुंच सुनिश्चित की।
शिक्षा और करियर:
तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्मे, डॉ. स्वामीनाथन ने IARI से एम.एससी. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जेनेटिक्स में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। IARI निदेशक (1961–72), ICAR महानिदेशक (1972–79), IRRI प्रमुख (1982–88), और कृषि मंत्रालय में सचिव के रूप में सेवाएं दीं।
सम्मान और विरासत:
डॉ. महापात्र आणविक आनुवंशिकी और उच्च गुणवत्ता वाले बासमती चावल के अग्रदूत कहे जाते हैं। वे भारत में जीनोमिक्स और आणविक प्रजनन के प्रणेता रहे हैं। उन्होंने धान, टमाटर, दलहन, गन्ना जैसी फसलों के लिए अनेक उच्च उत्पादक और रोगरोधी किस्मों का विकास किया।
शिक्षा और करियर: ओडिशा के कटक में जन्मे, उन्होंने IARI से जेनेटिक्स में पीएच.डी. की और 20 वर्षों तक आणविक आनुवंशिकी पर शोध किया। उन्होंने NRCPB निदेशक, IARI कुलपति, ICAR महानिदेशक और DARE सचिव जैसे उच्च पदों पर कार्य किया।
कृषि क्षेत्र में प्रमुख योगदान: पुसा बासमती 1121 का विकास और भारत के कृषि निर्यात का प्रमुख स्तंभ रहे हैं। चावल, टमाटर के जीन मैपिंग और आणविक प्रजनन में अभूतपूर्व योगदान साथ ही युवा वैज्ञानिकों को मार्गदर्शन और राष्ट्रीय कृषि नीतियां बताया करते थे।
विशेष सम्मान: INSA यंग साइंटिस्ट अवार्ड (1994), DBT बायोसाइंस अवार्ड, बी.पी. पाल मेमोरियल अवार्ड, NASI, INSA जैसे राष्ट्रीय विज्ञान संस्थानों के वरिष्ठ सदस्य रहे हैं।
मंगीना वेंकटेश्वर राव (1928–2016): डॉ. राव हरित क्रांति के अग्रदूत, गेहूं व तिलहन उत्पादन के जनक वैज्ञानिक कहे जाते हैं। वे भारत के प्रमुख आनुवंशिकीविद् और पादप प्रजनक रहे। उन्होंने गेहूं और तिलहन की उच्च उत्पादक किस्मों का विकास किया, जिससे भारत की खाद्य और खाद्य तेल सुरक्षा को मजबूती मिली।
प्रमुख पद और सम्मान:
कृषि क्षेत्र में प्रमुख योगदान: गेहूं व तिलहन में उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास किया, साथ ही हरित क्रांति के तहत संस्थागत सुधारों और उत्पादन बढ़ोतरी में प्रमुख भूमिका निभाई। वैश्विक खाद्य सुरक्षा शोधों में भारत का नेतृत्व किया।
कृष्णास्वामी रामैया (1892–1988): डॉ. रामैया को भारत में चावल अनुसंधान और संकरण पद्धति के जनक कहे जाते हैं। भारत में व्यवस्थित चावल संकरण (हाइब्रिडाइजेशन) की शुरुआत करने का श्रेय है। वे केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक के पहले निदेशक बने और उन्होंने कई नई चावल किस्में विकसित कीं।
प्रमुख सम्मान:
प्रमुख योगदान:
डॉ. राजेन्द्र सिंह परोडा (जन्म: 1942): डॉ. परोडा ने भारत में कृषि अनुसंधान को नई दिशा दी। इन्हें नीति निर्माता, जर्मप्लाज्म संरक्षक और कृषि वैज्ञानिक संस्थानों के निर्माता माने जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जीन बैंक की स्थापना की और ICAR जैसी संस्थाओं को आधुनिक रूप दिया।
प्रमुख पद:
सम्मान: पद्म भूषण (1998), नॉर्मन बोरलॉग पुरस्कार (2006), डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड (2025)
अविस्मरणीय योगदान:
इन वैज्ञानिकों के द्वारा बोए गए बीज चाहे वे खेत के हों या ज्ञान के – आज भारत की समृद्धि और आत्मनिर्भरता की नींव हैं। खेतीव्यापार आज इन कृषि गुरूओं के सम्मान में सभी किसान भाईयों के साथ इनका नमन करता है।