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Garlic Farming in Hindi, लहसुन की खेती बना देगी किसानों को लखपति, जानें खेती करने का क्या है तरीका

Garlic Farming in Hindi, लहसुन की खेती बना देगी किसानों को लखपति, जानें खेती करने का क्या है तरीका
लहसुन की खेती बना देगी किसानों को लखपति, जानें खेती करने का क्या है तरीका

लहसुन एक कन्द वाली मसाला फसल है। लहसुन की एक गांठ में कई कलियाँ पाई जाती है। इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसकी एक खास गंध एवं तीखा स्वाद होता है। इसका इस्तेमाल गले तथा पेट सम्बन्धी बीमारियों में किया जाता है। यह एक नकदी फसल है तथा इसमें प्रमुख पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं । लहसुन सुगन्ध तथा स्वाद के कारण लगभग हर प्रकार की सब्जियों एवं माँस के व्यंजनों में किया जाता है। इसमें एण्टीबैक्टीरिया तथा एण्टी कैंसर गुणों के कारण बीमारियों में प्रयोग में लाया किया जाता है। यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। म.प्र. में लहसून का क्षेत्रफल 60000 हे. उत्पादन होता है। लहसुन की खेती मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, एवं उज्जैन के साथ-साथ प्रदेश के सभी  जिलों में इसकी खेती की जा सकती है। 

जलवायु और तापमान Climate and Temperature:

लहसुन ठंडी जलवायु में उगाई जाने वाली फसल है। लहसुन के लिये गर्मी और सर्दी दोनों में सहन करने की क्षमता कम होती है। अधिक गर्मी और लम्बे दिन इसके कंद निर्माण के लिये उत्तम नहीं रहते है छोटे दिन इसके कंद निर्माण के लिये अच्छे होते है। इसकी अच्छी पैदावार के लिये 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान और 70% आद्रता उपयुक्त होती है। लहसुन की खेती कम तापमान में ज्यादा समय तक बने रहने से पत्तियों के कक्ष में कंदिका उत्पन्न हो सकती है, जिससे कंद उपज कम हो सकती है।

लहसुन की खेती कैसे करें How to do Garlic Cultivation:

किसान भाई बरसात के मौसम में लहसुन की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं। वैसे जो सितम्बर-अक्टूबर के मध्य लहसुन की बुवाई उपयुक्त मानी जाती है लेकिन बरसात के समय जून-जुलाई या अगस्त में बुवाई करते हैं तो चार महीने में फसल तैयार हो जाती है। अच्छी पैदावार के लिये ढ़लान वाले खेत का चुनाव करना चाहिए जिससे पानी खेत में इकठ्ठा नहीं होगा। बेढ विधि से खेती करना लाभकारी है।

भूमि एवं खेत की तैयारी:

इसके लिये उचित जल निकासी वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम उपयुक्त होती है। कठोर भूमि में इसके कंदों का विकास नहीं हो पाता है। मिट्टी का पी एच. मान 5.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है। लहसुन की फसल अम्लीय क्षारीय तथा लवणीय मृदा में संवेदनशील होती है। गहरी जुताई करें, मिट्टी की जैविक सामग्री को बढ़ाने के लिये अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर डालें। रोटावेटर से दो-तीन जुताई करके खेत को अच्छे से समतल बनाकर क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिये। मिश्रण को मिट्टी में लगभग दो सप्ताह तक खुला रखें ताकि इसका अपघटन हो सके। उपयुक्त जीवाश्म वाली मिट्टी में लहसुन की खेती कर सकते हैं।  

लहसुन की उन्नत किस्में Garlic Varieties:

  1. यमुना सफेद जी1: इसके प्रत्येक शल्क कंद ठोस तथा बाहृ त्वचा चांदी की तरह सफेद कली क्रीम के रंग की होती है। 150-160 दिनों में तैयार हो जाती है। पैदावार 150 से 160 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
  2. यमुना सफेद 2 जी50: इसके कन्द ठोस त्वचा सफेद गुदा, क्रीम रंग का होता है। इसकी पैदावार 130-140 क्विन्टल प्रति हेक्टयर हो जाती है। फसल 165-170 दिनों में तैयारी हो जाती है। रोगों जैसे बैंगनी धब्बा तथा झुलसा रोग के प्रति सहनशील होती है।
  3. यमुना सफेद 3 जी282: इसके शल्क कंद सफेद बड़े आकार व्यास (4-76 से.मी.) क्लोब का रंग सफेद तथा कली क्रीम रंग का होता है। 15-16 क्लोब प्रति शल्क पाया जाता है। यह 140-150 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार 175/200 क्विंटल/हेक्टेयर है 

बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा: लहसुन की बुवाई सितम्बर-अक्टूबर के मध्य कर सकते हैं। लहसुन की बुवाई छिड़काव या डिबलिंग विधि से की जाती है। कलियों को 5-6 सेमी. मिट्टी में गाड़कर ऊपर से हल्की मिट्टी से ढकना चाहिए। लहसुन के कलियों के पतले हिस्से को ऊपर ही रखते हैं। बुवाई करते समय कलियों के बीच की दूरी 8 सेमी. तथा कतारों से कतारों की दूरी 15 सेमी. रखना चाहिए। लहसुन की आकार के आधार पर बीज की मात्रा निर्भर करती है। मध्यम आकार के लहसुन 160-170 प्रति एकड़ किलोग्राम बीज की आवश्यकता पडती है।

खाद एवं उर्वरक Manure and Fertilizer: खाद व उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरता पर निर्भर करती है। प्रति हेक्टेयर 20-25 टन गोबर या कम्पोस्ट या 6-8 टन वर्मी कम्पोस्ट, 100 कि.ग्रा. नत्रजन, 50 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश की आवश्यकता होती है। पहली खाद बुवाई से लगभग 30-35 दिन बाद 1 बोरी यूरिया (45 किलोग्राम), 5 किलोग्राम माइक्रोन्यूट्रियेन्ट खाद, 5 किलोग्राम कैल्शियम नाइट्रेट खाद प्रति एकड़ डालना चाहिए। दूसरी खाद जब फसल 50-55 दिन की होती है तो 35 किलोग्राम यूरिया और 5 किलोग्राम प्रति एकड़ माइकोराइजा डालना चाहिए।

लहसुन की सिंचाई कैसे करें: ड्रिप सिंचाई का प्रयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए। लहसुन के लिये स्प्रिंकलर सिंचाईअच्छी होती है। आवश्यकतानुसार मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर सिंचाई करना चाहिए। 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। सिंचाई हल्की एवं खेत में पानी भरने नही देना चाहिए। लहसुन की फसल के लिये पानी की आवश्यकता 600 से 700 मिमी वर्षा के बराबर होनी चाहिए। लहसुन के पौधों को मिट्टी या दोमट मिट्टी पर प्रति सप्ताह कम से कम 1 इंच और रेतीली मिट्टी पर 2 इंच तक पानी मिलना चाहिए।

निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण: जड़ों में उचित वायु संचार हेतु खुरपी या कुदाली द्वारा बोने के 25-30 दिन बाद प्रथम निदाई-गुडाई एवं दूसरी निदाई-गुडाई 50-55 दिन बाद करनी चाहिए। इससे कन्द की पैदावार अच्छी होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्लुक्लोरोलिन 1 कि.ग्रा. के पूर्व 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिडकाव करना चाहिए।

नियंत्रण Control:

  1. कापर आक्सीक्लोराईड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी सेंडोविट 1 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से कवनाशी दवा का15 दिन के अंतराल पर दो बार छिडकाव करें।
  2. खुदाई एवं लहसुन का सुखाना: पौधौं की पत्तियाँ पीली पड़ने पर और सूखने पर सिंचाई बन्द कि देनी चाहिए । इसके बाद गाँठो को 3-4 दिनों तक सुखा लेते हैं। फिर 2 से 2.25 से.मी. छोड़कर पत्तियों को कन्दों से अलग कर लेते हैं । कन्दो को भण्डारण में पतली तह में रखते हैं। लहसुन पत्तियों के साथ जुड़े बांधकर भण्डारण किया जाता है।

उपज Yield: लहसुन की उपज उसकी जातियों भूमि और फसल की देखरेख पर निर्भर करती है प्रति हेक्टेयर 150 से 200 क्विंटल उपज मिल जाती है।

कीट और नियंत्रण Pests and Control:

  1. आर्द्र गलन/जड़ गलन रोग: यह रोग वातावरण के नमी के साथ लगता है। कई फफूंदो से यह रोग फैलता है। इस रोग से पौधों की जड़े सूखने लगती हैं तथा इसके बीज भूमि से निकलने से पहले ही सड़ जाते हैं। नियंत्रण के लिये कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत मैन्कोजेब 63 प्रतिशत 2 ग्राम प्रति लीटर डालना चाहिए। फसल चक्र अपनाऐं।
  2. डाउनी मिल्डयू रोग: इस रोग पत्तियां ऊपर से सूखने लग जाती हैं और नीचे की तरफ झुकने लग जाती हैं। यह बीमारी जनवरी के बाद लगती है। इसकी गांठ में काला धब्बा पड़ जाते हैं। नियंत्रण के लिये मेटालेक्जिल तथा मैन्कोजेब 1.5-2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करना चाहिए।
  3. थ्रिप्स रोग: यह रोग ठंड के मौसम में ज्यादा पनपता है। यह रोग पौधे की पत्तियों में सफेद से चांदी की परत के समान दिखाई पडता है। यह पत्तियों को सुखाकर उसका रस चूस लेता है।  नियंत्रण के लिये फसल चक्र अपनाऐं। सरसों की खली नीम की पत्ती और सूखे गोबर के कंडो की राख का छिड़काव करें।
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