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Pointed Gourd Cultivation in Hindi: किसान ऐसे करें परवल की इन किस्मों की खेती, जाने बुवाई का सही समय

Pointed Gourd Cultivation in Hindi: किसान ऐसे करें परवल की इन किस्मों की खेती, जाने बुवाई का सही समय
किसान ऐसे करें परवल की इन किस्मों की खेती

परवल की पैदावार एक वर्ष में 90 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। लेकिन यह बुवाई के तरीके पर निर्भर करती है। अच्छे तरीके से बुवाई करने पर लगभग 4 साल तक 160 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त हो सकती है। परवल भारत में बहुत ही प्रचलित सब्जी है। वर्तमान समय में किसान परवल की खेती करके काफी मुनाफा कमा रहे हैं। परवल की खेती वर्ष भर की जाती है। ये बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बंगाल पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामान्य तौर पर उगाई जाती है और राजस्थान मध्य प्रदेश, गुजरात, और महाराष्ट में भी ये कुछ बागानों में उगाई जाती है। परवल में विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसकी मांग भी बाजार में अधिक है और आइये जानते है परवल की खेती कैसे करें

परवल की खेती की जानकारी Parwal Cultivation information:

परवल को सब्जी के रूप में खाया जाता है, जिसकी खेती नगदी फसल के रूप में ही किया जाता है। परवल एक पौष्टिक और स्वस्थ से भरपूर सब्जी के रूप में जानी जाती है, जिसमे विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, और प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पाये जाते हैं। परवल की सब्जी का सेवन मानव स्वास्थ के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके फल का इस्तेमाल सब्जी के अलावा अचार और लड्डू को बनाने में भी किया जाता है।

परवल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, मिट्टी, तथा तापमान:

परवल की अच्छी उपज के लिए पानी, गर्म और आद्र जलवायु उपयुक्त माना जाता है, लेकिन अधिक वर्षा इसकी फसल के लिये उपयुक्त नहीं होती है। सर्दियों के सीजन में इसकी खेती नहीं की जा सकती है, क्योकि सर्दियों में पाला से इसके पौधों को काफी नुकसान होता है। औसतन वार्षिक वर्षा 1500-2000 मिली. होती है। परवल की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ, बलुई दोमट मिट्टी को बेहतर होती है, और भूमि का P.H. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।  परवल के फलो के बीज, शल्क और जड़ो के ठीक तरह से अंकुरण के लिए औसतन तापमान 25-30 सेल्सियस  डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। 

परवल की उन्नत किस्मे Improved Varieties of Parwal:

  • काशी अलंकार - परवल की यह किस्म अधिक पैदावार देने के लिए जानी जाती है।  यह भारत के पूर्वी और मध्य क्षेत्रों में अधिक उगाई जाती है। इस के फल की ऊपरी भाग हलके हरा रंग के होते है और देखने में काफी मुलायम दिखते हैं। परवल की यह किस्म एक हेक्टेयर में क़रीबन 200 से 250 क्विंटल की पैदावार प्राप्त है।
  • स्वर्ण अलौकिक - परवल की इस किस्म में फलो के अंदर कम मात्रा में बीज पाए जाते है, तथा फल अंडाकार गोल और रंग हल्का हरा होता है। इस किस्म के फल का उपयोग मिठाई को बनाने में किया जाता है। यह प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल की पैदावार देता है।
  • राजेन्द्र परवल 1 - परवल की यह वेराइटी बिहार के राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय द्वारा खोजी गई है। इसके फल थोड़े लम्बे बड़े और गोल आकार के होते हैं। इस फल का ऊपरी हिस्सा हरा रंग का होता है। एक हेक्टर में लगभग 160 से 180 क्विंटल उपज मिलती है। 

परवल की खेती के लिये खेत की कैसे तैयार करे: परवल की खेती के लिए बीज रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए आपको पहले खेत की मिट्टी को पलटने वाले हल से 1 से 2 बार खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई कर देनी चाहिए। जिससे पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाये और खेत की जुताई के बाद उसे कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ देना चाहिए जिससे खेत की मिट्टी में अच्छी तरह धूप लग सके। खेत की मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए खेत में कल्टीवेटर की सहायता से दो से तीन बार गहरी जुताई कर देनी चाहिए।  उसके बाद खेत में पानी लगा कर पलेवा लगवा दें।  मिट्टी के भुरभुरा होने जाने के बाद पाटा लगा कर खेत में चलवा दे जिससे खेत समतल हो जायेगा। 

परवल की खेती कैसे करें How to Parwal Cultivation:

परवल के बीजो की रोपाई समतल और मेड दोनों ही प्रकार की जगहों में किया जा सकता है। समतल भूमि में इसके पौधो को तैयार की गई क्यारियों में लगाया जाता है। क्यारियों के मध्य में 4 से 5 मीटर की दूरी होना चाहिए। मेड पर रोपाई के लिए पौधो को एक मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए, और मेड़ों के बीच में डेढ़ से दो मीटर की दूरी का होना चाहिए। मेड़ पर लगाए गए पौधो को सहारा देने के लिए लकड़ियों के माध्यम से मचान को तैयार कर लेना चाहिए। जिससे पौधे का विकास अच्छे से हो सके। 

बुवाई का सही समय: परवल के पौधो की बुवाई जून और अगस्त का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा अक्टूबर और नवम्बर के माह में भी इसकी बुवाई की जा सकती है।

परवल के पौधो की सिंचाई: परवल के पौधो को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। इसकी पहली सिंचाई पौध रोपाई के तुरंत बाद करना चाहिए तथा दूसरी  सिंचाई 10 से 15 दिन के अंतराल में करना चाहिए। मेड़ पर लगाए गए पौधो की सिंचाई को  ड्रिप विधि द्वारा करना चाहिए। बारिश के मौसम में पौधो को पानी की जरूरत कम पडती है।

खाद व उवर्रक की मात्रा: परवल के पौधो की अच्छी उपज के लिए सही समय पर उचित उवर्रक की आवश्यकता होती है।  इसके लिए खेत को तैयार करते समय 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला देना चाहिए। रासायनिक खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा को खेत की आखरी जुताई के समय छिड़काव कर देना चाहिए। नाइट्रोजन 70 से 80 किलोग्राम और फास्फोरस 50 से 60 किलोग्राम एवं पोटाश 30 से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टर में दे सकते हैं साथ ही 15-20 किलो यूरिया की खाद को पौधे की वृद्धि के समय छिड़काव करना चाहिए।

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रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करे:

  1. पाउडरी मिल्ड्यू फफूंदी: इस रोग लगने से पौधे की पत्तियां मे से रस चूस लेते है और बाद में पत्तिया सूख जाती है और जमीन पर गिर जाती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए सिजेंटा कंपनी का कवच फलो क्लोरोथालोनिल 40.0% W/W + डाइफेनकोनाज़ोल 4.0% W/WSC 16 लीटर पानी के साथ 25 मिलीग्राम मिलाकर 15 दिन के अंदर दो बार छिटकाव करे।
  2. पर्ण सुरंगक: यह कीट पर्ण में सुरंग करना तना के पर्ण में सुराग हो जाने से तना की वृद्धि रुक जाती है और पत्तिया पर भी सफेद धारी दिखाय देती है। इस कीट नियंत्रण के लिए एबामेक्टीन 1.9% E/C, 6 मिलीलीटर, डायफेन्थ्रीयुरोन 50% W/P 16 लिटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
     
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