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Dragon Fruit Farming in Hindi: ड्रैगन फ्रूट की खेती से होगी लाखों की कमाई जाने इसका आर्थिक महत्व तथा विशेषताएं

Dragon Fruit Farming in Hindi: ड्रैगन फ्रूट की खेती से होगी लाखों की कमाई जाने इसका आर्थिक महत्व तथा विशेषताएं
ड्रैगन फ्रूट की खेती से होगी लाखों की कमाई जाने इसका आर्थिक महत्व तथा विशेषताएं

ड्रैगन फ्रूट एक बेल की तरह तेजी से बड़ने वाल नागफनी है। इसे चांदनी नाइट फुलिंग सेरेस स्ट्राबेरी पीयर बेले आफ द नाइट और कंड्रेला प्लांट के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खेती मलेशिया ताईवान इंडोनेशिया थाईलैंड श्रीलंका बांग्लादेश और वियतनाम देशों में की जाती है। अब ड्रैगन फ्रूट की खेती भारत में भी की जाती है। यह अत्यधिक पौष्टिक और स्वादिष्ट फल है। ड्रैगन फल स्वास्थ्य के लिये बहुत के लिए बहुत लाभदायक होता है। क्योंकि इसमें विटामिन खनिज फाइबर प्रोटीन आदि पोषक तत्व पाये जाते हैं। लाल पिताहृा प्रजाति बड़े स्तर पर उगाई जाती है।

ड्रैगन फ्रूट की जानकारी Dragon Fruit information:

ड्रैगन  कैक्टेसी कुल के पौधे हैं। इन्हें सूखे क्षेत्र का पौधा भी कहते हैं। ये ऊँचे पर्वतों, उष्ण, आर्द्र उष्णकटिबंध क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं। भारत में शोभा के लिए आकर्षक रंगों के फूलों के कारण, बागों में या शौक के कारण घरों में गमलों में लगाए जाते हैं। ड्रैगन के पौधे बहुत धीरे-धीरे बढ़ते और बहुत दिनों तक जीवित रहते हैं। कटे हुए तने से पौधे तैयार होते हैं। ड्रैगन की लगभग 25 जातियाँ पाई गई हैं। ये अनेक आकार के होते हैं, छोटे से छोटे तीन इंच तक के और बड़े से बड़े 70 फुट तक के होते हैं। सब से बड़ा कैक्टस साग्वारो होता है, जो दक्षिण-पश्चिम अमरीका की पथरीली घाटियों और पर्वतों के आस पास बहुतायत से पाया जाता है, सबसे छोटा मैमेरिया फ्राजाइलिस अँगूठे के बराबर होता है।

ड्रैगन फ्रूट की मुख्य प्रजाति Dragon Fruit Varieties:

  1. ओपंशिया इसे इंडियन कैक्टस भी कहते हैं। इसकी 250 जातियाँ मालूम हैं, यह उत्तरी अमरीका, वेस्ट इंडीज, दक्षिणी अमरीका में चिली तक फैला हुआ है। इसके फूल पीले या ललापन लिए पीले होते हैं। ओपंशिया की एक जाति पैरेस्किया है, जिसमें चौड़े पत्ते होते हैं तथा काँटे नहीं होते।
  2. सीरियस इनके तने लंबे और स्तंभाकार होते हैं। इस जाति की ड्रैगन  साग्वारा है, जो 70 फुट तक ऊँचा पाया गया है। इसके तने में 10 से 20 तक शिराएँ होती हैं। इनके फूल बड़े सुंदर और लुभावने होते हैं। 
  3. एकाइनी कैक्टस इसे शल्यकी ड्रैगन भी कहते हैं। ये साधारणतया रेगिस्तान में ही उगते हैं। ये गोलाकार, बेलनाकार और धारीवाली होती हैं। इनके फूल बड़े-बड़े, देखने में सुंदर तथा पीले और गुलाबी रंग के होते हैं। इनमें रसदार फल लगते हैं। एक पौधे में 50 हजार तक कांटे पाए गए हैं।

ड्रैगन फ्रूट की खेती कैसे करें How to Dragon Fruit Cultivation:

ड्रैगन की खेती के लिये पौधों के बीच की दूरी और लकड़ी द्वारा दिये जाने वाले सहारे पर निर्भर करती है। पंक्तियों के बीच की दूरी 2 से 3 मीटर रखी जानी चाहिए। 2000 से 3750 कलमे प्रति हेक्टेयर लगाई जाती है। कलम विधि द्वारा पौधे बहुत जल्दी एक वर्ष से भी कम समय में फल देने योग्य हो जाते हैं। कलम की लंबाई 20 सेमी. रोपण के लिये ली जाती है।इन कलमों को गमलों में रोपित किया जाता है। गमलों को अच्छी तरह से फार्म यार्ड रेतीली मिट्टी को 1:1:2 के मिश्रण में रोपित किया जाता है। बागनों में पौध रोपण के समय पौधे के बीच की दूरी 2x2 मीटर गढ्ढे का आकार 60 सेमी. उपयुक्त है। गढ्ढों के ऊपर मृदा कम्पोस्ट और 100 ग्राम सुपरफास्फेट से भर दिया जाता है।

ड्रैगन फ्रूट के लिये जलवायु मिट्टी तथा तापमान: ड्रैगन फल को विभिन्न तापमान में उगाया जा सकता है किन्तु उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिये सबसे सर्वोत्तम है। इसकी खेती कम वर्षा 50-60 सेमी. तथा तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस वाले क्षेत्रों में आसानी से कर सकते हैं। यह अधिक तापमान सहन कर सकता है। इसकी प्रजाति ज्यादा से ज्यादा 40 डिग्री सेल्सियस तापमान सहन कर सकती है। 
ड्रैगन की खेती के लिये रेतीली बालू से बालुई दोमट मिट्टी अच्छे कार्बनिक पदार्थ तथा आंतरिक जल निकास वाली रेतीली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पी.एच. 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए।

ड्रैगन फ्रूट के लिये खाद तथा सिंचाई: ड्रैगन के लिये खनिज और कार्बनिक पदार्थ वृद्धि के लिये बहुत लाभदायक होते हैं। इसके पौधे को 12-15 किलोग्राम कार्बनिक खाद प्रति पौधा प्रति वर्ष देनी चाहिए। फल बनने के समय पोटाष की उच्च मात्रा और नाइट्रोजन की कम मात्रा देनी चाहिए। ड्रैगन की खेती में कम वर्षा और कई महीनों तक सूखा सहन कर सकता है। फल की अच्छी पैदावार के लिये नियमित सिंचाई की आवष्यकता पड़ती है। नियमित सिंचाई से जल संचय करने में सक्षम बनाती है जो न केवल फूल निकलने के समय बल्कि फल की वृद्धि भी अधिक होती है।

ड्रैगन फ्रूट का आर्थिक महत्व तथा विशेषतायें: ड्रैगन सूखा पड़ने पर मेक्सिकों में इसके फल खाए जाते हैं। फलों को सुखाकर और पीसकर मवेशियों को भी खिलाया जाता है। ड्रैगन ठट्टी का भी काम देते हैं। कुछ के काँटे इतने लंबे और दृढ़ होते हैं कि वे ग्रामोफोन की सूइयों और आल्पीन का काम देते हैं। कुछ ड्रैगन ईधंन का भी काम करते हैं। यह सुंदर फूलों के लिए बागों या गमलों में घरों में लगाए जाते हैं इनके फूल सफेद, पीले, लाल, नीले आदि विभिन्न प्रकार के होते हैं। रोगों का नाश करने में भी कुछ नागफनियों के व्यवहार का उल्लेख मिलता है। इनके तनों से पानी निकालकर प्यास भी बुझाई जा सकती है।

अधिकांश कैक्टसों में पत्ते या टहनियाँ नहीं होतीं, इनके तने साँप के फन के आकार के गूदेदार मोटे दलवाले होते हैं। इन दलों में बहुत काँटे होते हैं। कुछ काँटे ऐसे कड़े होते हैं कि वे ग्रामोफोन की सूइयों या आलपिन का काम दे सकते हैं। इनके अनेक प्रकार के रूप बेलनाकार, गोलाकार, स्तंभाकार, और चिपटे होते हैं। इनमें अधिकांश में पत्ते नहीं होते। जहाँ पत्ते होते हैं वहाँ उनका आकार बहुत छोटा होता है। इनमें कुछ के फूल अपेक्षया बड़े आकार के और रंग-बिरंगे तथा आकर्षक होते हैं। फूलों के रंग सफेद, पीले, नीले, लाल और अन्य विभिन्न आभाओं के होते हैं। कुछ फूल लंबे नलाकार और कुछ छोटे नलाकार होते हैं। कुछ लोग इन फूलों के कारण ही ड्रैगन को बागों में लगाते हैं।

ड्रैगन फ्रूट के फायदे: ड्रैगन का फल खाने से शरीर की इम्युनिटी कब्ज जैसी समस्या को दूर करने में सहायक है। ड्रैगन फ्रूट खाने से सेहन को ही नहीं बल्कि त्चचा को भी कई फायदे पहुंचाता है। जैसे- इसमें विटामिन-सी भरपूर मात्रा में पाई जाती है जो चेहरे के काले धब्बों को साफ करती है। इसमें उपस्थित इन्फ्लेमेटरी गुण त्वचा की जलन और एलर्जी को कम करने में सहायक होती है। इसमें मौजूद विटामिन सी कोलेजन का उत्पादन करने बालों को मजबूत बनाने और टूटने से बचाने में मदद करता है।

ड्रैगन फ्रूट की तुड़ाई तथा पैदावार: ड्रैगन फल की त्वचा का रंग बहुत देर से बदलता है। यह फूल आने के 25 से 27 दिन बाद हरे से लाल या गुलाबी रंग में परिवर्तित होता है। इसकी पहली कटाई, कलम रोपण के 18 महीने बाद प्रारम्भ होती है। फूल बनने के समय 27 से 33 दिन की होती है। इसकी पैदावार पौध घनत्व पर निर्भर करती है। यह 15-30 टन प्रति हेक्टेयर होती है। इसमें डंठल नहीं होने के कारण इसकी तुड़ाई मुष्किल होती है।
 

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